Sārvajanika carāgāha: aurata?: upanyāsaĪbhāyaṇa, 1967 - 144 pages |
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अपनी अपने अब आज आप इस इस तरह उनकी उनके उन्हें उन्होंने उपाध्याय उस उसकी उसके उसी उसे एक दिन ओर और औरत कन्हैया कभी कर करती करते करने कहा का कि मैं किन्तु किया किस किसी की कुछ के लिए कैसे को कोई क्या क्यों गया गयी घर चली चले चाहिए जब जा जाती जिन्दगी जी जो डाक्टर तक तब तरह तुम तो था थी थे दिया दे देख देखा दो दोनों न जाने नहीं है नारी ने पति पर पुरुष फिर बहुत बात बार बाहर भी भी नहीं मगर मन माँ मुझसे मुझे में मेरा मेरी मेरे मैंने यह यही या रह रहा है रही रही थी रही हूँ रहे रात लगा लगी लगे लिया ले वह वे शायद सकता सकती सब समझ सही साथ सामने से हर हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ है और है कि हैं हो गये होगा होता होती होने