Kisī se na kahanā: maulika sāmājika upanyāsaSāhitya Kendra Prakāśana, 1968 - 187 pages |
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अंजु को अपना अपनी अपने अब अभी इस उठी उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक और और वह कभी कमरे कर करने करो कह कहा का कि कितनी किया किसी की की ओर की तरह कुछ के लिये के साथ कोई क्या क्यों गई गये घर चेहरे पर जब जा जाने जायेगा जी जीवन जो तक तुम तुमने तुम्हारे तुम्हें तू तो था थी थे दिन दिया दीदी दृष्टि दे दो दोनों नहीं ने पड़ी पत्र पर परन्तु पागल पास प्रबोध प्रेम फिर बड़ी बहुत बात बाबूजी बार भर भी मगर माँ मुकुल के मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने यह रत्ना रविन्द्रनाथ रह रहा था रही थी रही है रहे रेखा लगा लगी लड़की लिया वह वे शादी शान्ता सकता सकती सब समय साड़ी सिर सी सुरजीत से स्वर हम हाँ ही हुआ हुई हुए हूँ है और हैं होकर होगा होता है होती होने होली