Vijayinī: Svāmī Rāmakr̥shṇa Paramahaṃsa kī pramukha śishyā para ādhārita upanyāsa

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Bhāratīya Granthamālā, 1963 - 186 pages

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अच्छा अपना अपनी अपने अब अभी अम्बिका आज आप इस उनके उन्हें उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक ऐसा ओर और कभी कर करती करना करने कल कल्याणी कह कहकर कहा कहाँ कहीं का कि कितना किया किसी की कुछ के लिये कैसे को कोई क्या क्यों गयी गये घर जब जरा जल्दी जा जाने जाये जो ठीक तक तब तरह तुम तुम्हारे तुम्हें तो था थी थे दिन दिया दे देख देखकर देर दो दोनों धीरेन्द्र नहीं ने पर पार्वती पास प्यार फिर बड़ी बस बहुत बहू बाई बात बाबा बाहर बोली भर भी भी तो मत मन माँ मालूम मुझे में मेरी मेरे मैं यह यहाँ यही रहा रही है रहे रात राधा लगा लगी ले लेकिन लोग वह विवाह श्राज सकता सकती सब सब कुछ समय साथ से हम हाँ ही ही नहीं हुआ हुयी हुये हूँ हृदय है कि हैं हो गया होगा

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