Tulasī ke bhaktyātmaka gīta, viśeshtah: Vinayapatrikā

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Hindī Sāhitya Saṃsāra, 1964 - 320 pages

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अधिक अपनी अपने अब इन इस इस प्रकार इसके इसलिए इसी उनकी उनके उन्होंने उस उसका उसके एक एवं ऐसे और कबीर कर करते हैं करना करने कवि कहा का कारण काव्य किन्तु किया है किसी की कुछ कृष्ण के लिए को कोई गई गया है गीत गीतावली गीतों जब जा जाता है जी ने जैसे जो तक तथा तरह तुलसी तुलसी के तुलसीदास तो था दिया दो दोनों द्वारा नहीं नाम ने पद पद में पर पृ० प्रति प्रभु प्रसाद प्रेम फिर बहुत भक्त भक्ति भगवान् भाव भी मन मानस माया में यह या ये रस राम रामचरितमानस रामायण रूप लिखा लेकिन वर्णन वह वही वाले विचार विद्यापति विनयपत्रिका वे वें पद वेद शब्द शिव श्री श्रीकृष्ण सकता सब साहित्य सीता सूरदास से सो हम हरि हिन्दी ही हुआ हुए हृदय है और है कि हैं हो होता है होती

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