Ādhunika Hindī samīkshā: samīkshātmaka nibandha-saṅgrahaArticles on Hindi literature and criticism, with editorial introduction. |
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अज्ञेय अथवा अधिक अनुभव अनुभूति अपनी अपने अर्थ आज आदि आलोचना इन इस इस प्रकार इसलिए इसी उनका उनकी उनके उन्होंने उपन्यास उस उसका उसकी उसके उसमें उसी उसे एक ऐसा ऐसी ऐसे कर करता है करती करते हैं करना करने कला कवि कविता कहा का कारण काव्य किन्तु किसी की कुछ के लिए के साथ केवल को कोई क्या गहराई चाहिए चेतना जब जा जाता है जाती जिस जीवन की जो तक तथा तरह तो था थी थे दृष्टि दोनों द्वारा नहीं है ने पर प्रति प्रेमचन्द फिर बहुत बात भाव भाषा भी मनुष्य मानव में मैं यदि यह या ये रचना रहा रहे रूप में लेखक वह विचार वे व्यक्ति शब्द शब्दों संस्कृति सकता है सकते समय समाज सम्बन्ध सामाजिक साहित्य के से हम हमारी हमारे हमें हिन्दी हिन्दी साहित्य ही हुआ हुई हुए है और है कि हैं हो होकर होगा होता है होती होते होने